
हॉरर फिल्मों के शूटिंग की भी कुछ अलग कहानी होती है। आपके साथ कोई घटना घटी?
(हंसते हुए) हॉरर तो नहीं, लेकिन उससे बढ़कर ही घटना हो गई। जहाज पर एक सीन शूट कर रहा था, जब एक दरवाजा टूट कर मुझ पर गिर पड़ा और उसकी कुंडी से चेहरे पर गहरी चोट लग गई। उस वक्त हम भावनगर में शूटिंग कर रहे थे। मुझे जल्द ही अस्पताल ले जाया गया। मेरा नसीब अच्छा था कि उस दिन भारत के टॉप 3 प्लासटिक सर्जन वहां मौजूद थे। मुझे थोड़ी राहत मिली। कई टांके लगे, चेहरा सूज गया था। शूटिंग खत्म होने के बाद वीएफएक्स के जरीए चेहरे के मार्क को सही किया गया।
इस चोट की वजह से फिल्म की शूटिंग पर कोई फर्क पड़ा था?
भूत की शूटिंग पर तो नहीं, लेकिन भूत की शूटिंग खत्म होते ही पांच दिनों के बाद मुझे ‘उधमसिंह’ शुरु करनी थी, जिसकी शूटिंग के लिए रूस पहुंचना था। मैंने शूजित सरकार को अपनी फोटो भेजी कि चेहरे का ऐसा हाल है। तो उन्होंने कहा कि, कोई बात नहीं, तुम आ जाओ, हम किरदार को यही मार्क दे देंगे। तो उधमसिंह का जो लुक भी आया, उसमें जो निशान है, वो असली है।

‘भूत’ आपकी पहली हॉरर फिल्म है। इस ज़ॉनर की फिल्मों को आप व्यक्तिगत तौर पर कितना पसंद करते हैं?
मैं अकेले देखना बिल्कुल पसंद नहीं करता। मुझे बहुत डर लगता है। लेकिन दोस्तों के साथ देखना एन्जॉय करता हूं। भूत की भी बात करें तो, मुझे उम्मीद नहीं थी कि इस जॉनर की फिल्म के लिए कोई मुझे लेना चाहेगा। लेकिन जब मुझे इसके लिए बुलाया गया था, तो मैंने सोचा कि धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म है तो कुछ रोमांस भी होगा, गाने भी होंगे.. कितना ही हॉरर होगा। लेकिन जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तो मेरी हालत खराब हो गई। मुझे बहुत डर लगा। मैं रात को स्क्रिप्ट पढ़ रहा था, बीच में मैं डर से पानी पीने तक नहीं गया। फिर मैंने अगले दिन आकर फिल्म को हां कर दिया था। दर्शकों को हमेशा शिकायत होती है कि बॉलीवुड हॉरर फिल्मों में डर नहीं लगता है, हंसी ज्यादा आती है। तो मुझे लगा कि ये फिल्म एक अलग दिशा में जा सकती है। और इस जॉनर के लिए रास्ते खोल सकती है।

फिल्म साइन करते हुए बैनर/ प्रोडक्शन हाउस का कितना ध्यान रखते हैं?
कहानी अहमियत रखती है, लेकिन हां, प्रोडक्शन हाउस पर भी भरोसा होना जरूरी होता है.. कि हां ये सफर किस तरह से पूरी हो पाएगी। इससे एक सुरक्षा का अहसास होता है। एक फिल्म के सफर में आजकल फिल्म बनाना सिर्फ एक पहलू होता है.. फिल्म का प्री-प्रोडक्शन और पोस्ट- प्रोडक्शन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। उसकी मार्केटिंग अहम होती है कि जिसमे लिए हम फिल्म बना रहे हैं, उस तक पहुंच रही है या नहीं। कई बार एक अच्छी फिल्म बन जाती है, लेकिन वह लोगों तक पहुंचने का माध्यम ही नहीं ढूंढ़ पाती। हम किसी एडिटर या खुद के लिए तो काम नहीं करते हैं, हम दर्शकों के लिए काम करते हैं, तो जरूरी है कि हर फिल्म उन तक पहुंचे।

भूत साइन करने से इसके रिलीज होने के बीच में आपकी फिल्म उरी रिलीज हुई, जो कि ब्लॉकबस्टर रही। इससे आत्म- विश्वास बढ़ा?
मुझे तो और ज्यादा डर लगने लगा है। पहले तो ऐसा लगता कि.. मजा आ रहा है फिल्म करने में, रिलीज होने के बाद देख लेंगे क्या रिस्पॉस मिलता है। अब लग रहा है कि.. चल जा यार, चल जा। एक जिम्मेदारी महसूस होती है.. लेकिन ये एक अच्छी जिम्मेदारी लगती है। ये डर होना जरूरी है, ये आपको उड़ने नहीं देती है। लोगों को आपने एक उम्मीद बंध जाती है कि आप अच्छा काम करोगे।

आपके हिसाब से ‘भूत’ में ऐसा क्या है जो दर्शकों को आकर्षित करेगा?
बहुत समय के बाद पूरी तरह से एक हॉरर फिल्म आ रही है। और खास बात है कि इस फिल्म का भूगोल काफी अलग है। हमने हमेशा देखा है कि हॉरर फिल्में या तो पुराने किले में फिल्माए गए हैं, हवेली में या एक अपार्टमेंट में। लेकिन ये फिल्म एक जहाज पर है और रियल घटना से प्रेरित है। मुंबई के जुहू बीच पर एक बार एक जहाज आकर टकराया था, जिसमें कोई भी इंसान नहीं था। यह किस्सा काफी दिनों तक खबरों में भी रहा था। तो उस कहानी में हॉरर को जोड़कर ये फिल्म बनाई गई है। मुझे लगता है कि ये दर्शकों के लिए दिलचस्प होगा।
बॉलीवुड हॉरर फिल्मों को अब दर्शक गंभीरता से नहीं लेते हैं, इसके पीछे क्या वजह मानते हैं?
इसका हिसाब इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर ‘राज’ के अलावा एक भी हॉरर फ्रैंचाइजी नहीं है। यहां हम हॉरर फिल्मों में भी गाने, रोमांस, एक्शन आदि डालकर इस तरह पैकेजिंग दे देते हैं कि दर्शकों को सब कुछ मिल जाए। हॉलीवुड की फिल्मों में ऐसा नहीं होता है। हमने भी भूत में कुछ ऐसी ही कोशिश की है। ये सिर्फ हॉरर ड्रामा है। इसमें ना कॉमेडी है, ना रोमांस है, ना एक्शन है। तो मुझे लगता है कि दर्शक जो देखने के लिए आ रहे हैं, उन्हें वही मिलेगा।

असल जीवन में भूतों से डरते हैं?
(हंसते हुए) पंजाब में हमारा जो गांव है, वहां हमारे घर में एक बड़ा सा आंगन है, जिसके बगल में एक पीपल का पेड़ है। बचपन में मुझे बहुत नफरत थी उस पीपल के पेड़ से। रात को किसी भी वजह से अगर बाहर जाना होता था तो डर से हमारी हालत खराब हो जाती थी। हालांकि ऐसी कोई अजीबोगरीब घटना मेरे साथ कभी नहीं हुई है।

आपके भाई सनी कौशल भी फिल्मों और वेब सीरिज में काम कर रहे हैं। उन्हें सराहा जा रहा है। कैसा महसूस करते हैं?
सनी मुझे बहुत बेहतर एक्टर है। मैं खुश हूं कि अब उसे मौके मिल रहे हैं। वो दिनेश विज़न के साथ एक फिल्म कर रहे हैं, जिसका नाम है शिद्दत। देखा जाए तो हमारा सफर भी लगभग साथ ही शुरु हुआ है। ऑडिशन वाले साल हमने साथ में गुजारे हैं। मैं उसके लिए वीडियो बनाता था, वो मेरे वीडियो शूट करता था। बतौर भाई मैं हम दोनों के लिए बहुत खुश हूं। खास तौर पर इसीलिए भी क्योंकि हमने यहां तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष किया है।

करण जौहर ने एक बार आपकी तारीफ की थी कि इतनी सफलता पाने के बाद भी आपमें अहंकार नहीं आया है। आप खुद इसके पीछे क्या वजह मानते हैं?
मेरा परिवार.. मेरी परवरिश बहुत ही मिडिस क्लास परिवार की तरह हुई है। मैं अभी भी एक्टर तब हूं, जब एक्शन और कट के बीच में मेरा काम चल रहा होता है। उससे पहले और उसके बाद भी मैं सिर्फ एक ऑडियंस हूं, जो फिल्में देखना पसंद करता है और फिल्मों में काम करना पसंद करता है। मैं अपने आपको बतौर एक्टर ज्यादा गंभीरता से नहीं लेता। मेरा चेहरा दर्शकों तक पहुंचना मेरे काम का हिस्सा है। मुझे पता है कि एक फिल्म ना सिर्फ एक एक्टर की वजह से बनती है, ना चलती है। उस फिल्म में 300 लोग और काम करते हैं, तब जाकर फिल्म बनती है। यदि मैं किसी फिल्म का हिस्सा हूं और वो फिल्म हिट होती है तो उसमें मेरा एक छोटा का योगदान है। मैं एक टेक्नीशियन का बेटा हूं इसीलिए मुझे पता है कि वो लोग कितना काम करते हैं। एक लाइटमैन से लेकर साउंड डिजाइनर सभी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।

फिल्म उरी के लिए आपको नेशनल अवार्ड से भी नवाज़ा गया। उसे पाने के बाद आत्म विश्वास कितना बढ़ा?
सच बताऊं तो, नेशनल अवार्ड की जब घोषणा हुई तो मुझे पहले यकीन ही नहीं हुआ.. क्योंकि आपको ऐसे सपने देखने के लिए भी सालों लगते हैं। कुछ सालों के बाद आप सपना देखते हैं कि कभी नेशनल अवार्ड मिले। ऐसे में जब खबर आई कि अवार्ड मिल गया, तो मैं कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दे पाया था। लेकिन बहुत ज्यादा खुशी हुई थी। आज भी जब कभी किसी आर्टिकल में पढ़ता हूं ‘नेशनल अवार्ड विनर..’ तो बहुत अच्छा लगता है। यह एक शाबासी की तरह होती है। इससे आत्म विश्वास बढ़ता है।
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